वो सेज बहुत रोई होगी
आज पिया की बाहों में सारी सुधियां खोई होंगी
तुम जिस पर खुद को हार गई वो सेज बहुत रोई होगी।
जब बेबस सी बैठी होगी तू अपने घुटनों पे सर रखकर
जब काट रही होगी तुझको वो फूलों सी कोमल चादर ।
जब घूंघट के आलिंगन में सब कुछ वीरान नजर आता होगा
जब हांथों का कंगन भी खनकते वक्त डर जाता होगा ।
जब गजरे की गंध तुम्हारी सांसों में घुटती होगी
जब बिंदिया की आराईश से माथे की नश दुखती होगी।
जब खबर मेरी अकुलाहट की पायल ने छनक के दी होगी
जब तुमने बिन घुंघरू वाली पायल फिर पहनी होगी।
जब हांथों की मेंहदी से मेरा नाम कहीं ओझल होगा
जब मेरे सर से गुजर गया तेरी जुल्फों का बादल होगा।
जब हर धड़कन पीड़ित होगी और अधरों में जां अटकी होगी
जब जिस्म कहीं बंदी होगा और रूह कहीं भटकी होगी।
जब दिल के किसी किनारे पर तुमने मुझको ठेला होगा
जब संग तुम्हारे मायूसी का एक खौफनाक मेला होगा।
जब घर पंडालों की रौनक से मन सौ-सौ बार भगा होगा
जब लंहगा चुनरी जेवर सब तुमको बेरंग लगा होगा।
जब साथ-साथ जीने मरने की सब रस्में निभा रही होगी
जब मुझसे किये सभी वादे चुपके से भुला रही होगी।
जब सखियों ने मेरी तड़पन का कुछ तो हाल दिया होगा
जब तुमने उनकी नजरों से नजरों को फेर लिया होगा।
जब एक व्याकुल राही संग जाने को संवर रही होगी
जब एक-एक पल में तेरी सौ सदियां गुजर रही होंगी।
जब एक विजयी हाथों ने मस्तक सिंदूर भरा होगा
जब रक्त तुम्हारी नब्जों का एक पल को तो ठहरा होगा।
जब फेरों के वक्त तुम्हारे पांव लड़खड़ाए होंगे
जब मंत्रों के उच्चारण से मेरे पैगाम भी आए होंगे।
जब ढोल नगाड़ों की धुन में सारी बारात धुनी होगी
जब शहनाई की गूंजों में तुमने सिसकियां मेरी सुनी होंगी।
जब जयमाल देखने को सारे शहर की भीड़ उमड़ी होगी
जब मेरी गैरहाजिरी जाना तुमको फिर बहुत खली होगी।
जब मेरा बिछोह तेरी सांसों में खटक रहा होगा
जब एक पंछी शाख से उड़कर दर-दर भटक रहा होगा।
जब बाबुल के कंधे लगकर सब बचपन बिलख रहा होगा
जब यौवन के इश्क समर्पण को तुमने जीवन की भूल कहा होगा।
जब घर की सब रोती अंखियों ने तुझको विदा किया होगा
जब रस्ते भर तुमने मुझको अपने दिल से जुदा किया होगा।
फिर पहुंच सजन के आंगन में तुम उस चौखट की होई होगी
तुम जिस पर खुद को हार गई वो सेज बहुत रोई होगी।
तुम जिस वटवृक्ष की छांव बनी वो खुद पर इतराया होगा
बस एक मेरी बदकिस्मत पे रब को तरस न आया होगा।
जब साजन की आढ़तियों से तुम यूं इठलाती होगी
जब एकाएक मेरी उंगली की छुअन याद आती होगी।
जब शौक से उसके हांथों से तुम खाना खाती होगी
जब ख्याल हमारा आते ही भूख मर जाती होगी।
जब शाम ढले अपने प्रियवर के आने की आस लगी होगी
जब छत पर मुझे देखने को फिर से एक प्यास जगी होगी।
जब फेसबुक पर आकर मेरी तस्वीर सुखन देखी होगी
जब तुमने मेरी आंखों में रतजगों की थकन देखी होगी।
जब उसके संग नवजीवन की पहली बारिश में भीगी होगी
जब मेरे अश्कों की खबर तुझे सावन ने बरस के दी होगी।
जब बैठी होगी किसी सोंच में मेंज को टेक लगाये तुम
जब जीवन का हर एक पहलू कहीं ठहर गया होगा गुमसुम।
जब वक्त की कस्ती ने तुमको कहीं दूर ला के छोड़ा होगा
जब जाने की जल्दी में तुमने मेरे जख्मों से मुंह मोड़ा होगा।
जब करवा चौथ का चांद तुम्हें कुछ आज विलम्ब दिखा होगा
जब छलनी से पति के चेहरे में मेरा प्रतिबिम्ब दिखा होगा ।
जब इस बार की दीवाली सब धुंधला सा लगता होगा
जब बाहर दीप जले होंगे और अन्दर दिल जलता होगा।
जब इस बार की होली में साजन ने रंग भरा होगा
जब मेरे इश्क का रंग तुम्हारे तन-मन से फिर उतरा होगा।
जब कपड़े लेने उसके संग तुम बाजार गई होगी
जब पसन्द हमारी भूल के साड़ी उसके पसन्द की ली होगी।
जब कभी तुम्हारे साजन जी तुम पर गुस्साए होंगे
जब मुझे मनाने के सारे ढंग तुमने उन पर भी आजमाये होंगे।
जब ससुराल के आडम्बर तुमको धीरे से जकड़ रहे होंगे
जब किसी एक गलती पर तुमने ताने भी खूब सहे होंगे।
जब रिस्तों के दरमियां तुम्हारे समझौतों ने दस्तक दी होगी
जब कामकाज में रमकर तुमने सारी मस्ती छोड़ी होगी।
जब मुझको ठुकराने की बातें याद तुम्हें आई होंगी
जब तुम खुद के निर्णय पर फिर रह-रह पछताई होगी।
पर अब उलझनें सभी किनारे रख एक प्रश्न उमर भर है ढोना
क्या होता हर बार जरूरी है कुछ पाने खातिर सब-कुछ खोना ।
फिर पुनः मेरी हो जाने को तुमने एक हसरत संजोई होगी
तुम जिस पर खुद को हार गई वो सेज बहुत रोई होगी।
✍️….. अमन सिंह गार्जन