मुझे हर ओर तुम दिखती हो
मुझे हर ओर तुम दिखती हो….
जब शाम गुलाबी हो जाती है
जब रात शबाबी हो जाती है ।
जब मैं फूलों को सुबह की पहली किरण को चूमते देखता हूँ
जब मैं पत्तियों को हवाओं के साथ झूमते देखता हूँ
जब मैं खामोशी से आसमान को तकता हूँ
जब आँखें बन्द करके बारिश में भीगता हूँ
तुम दिखती हो।
तुम दिखती हो….
चौक, गली, दुकान, बाजार में
छत, बालकनी और घर की हर दीवार में
तुम दिखती हो….
दरख्त के तले, खाली पड़ी बेंच पर
फुटपाथों की लम्हा लम्हा धुंद में
घर के आँगन में खामोशी से बैठे हुए तुम दिखती हो ।
तुम दिखती हो…..
बिछे हुए बिस्तर की सिलवटों में
थकान खींचते हुए तकिए में
मेरे जिस्म की जल तरंग में जहाँ तुम्हारे दांतों और नाखूनों के निशां हैं,
मेरे होंठो पर तुम्हारे होंठो के बयां हैं।
तुम दिखती हो रुख्सारों की लर्जिश में
जुल्फों की शिकन में
तुम दिखती हो जिन्दगी के भरे गुलशन में
तुम दिखती हो दर्द के अंजुमन में ।
मुझे हर ओर तुम दिखती हो ।
✍️….. अमन सिंह गार्जन