तू मुझसे छीन ले मुझे
एक भटकी हुई उड़ान हूँ मैं सांझ की ढलान हूँ
बरिशों के बाद का मैं नीला आसमान हूँ
एक अधूरी दास्तान हूँ एक अनकही जबान हूँ
तेरे दिलफरेब इश्क का मारा हुआ जहान हूँ
मैं पांच वक्त की पढ़ी बेकुबूल अजान हूँ
तेरे गेसुओं के छांह की तरसी हुई थकान हूँ
मैं शकुन्तला की आंख में दुष्यंत का बयान हूँ
तू मुझमें है कहीं दफन मैं कब्र का मकान हूँ।
मैं मुद्दतों की प्यास हूँ मैं तुझमें आज तर जाऊं
तू पूंछे खैरियत मेरी ये सुनके मैं निखर जाऊं
मैं बाग-बाग हो जाऊं तेरी गली से जो गुजर जाऊं
हर शै में तेरा दीद हो तुझे ढूंढने जिधर जाऊं
तू जिस्म से रिहा करे मैं रूह में उतर जाऊं
बनके एक कसक मैं तेरी नब्ज में ठहर जाऊं
तू मुझसे कोई वादा कर इस बार मैं मुकर जाऊं
तू मुझसे छीन ले मुझे फिर मैं सुकूं से मर जाऊं।
✍️….. अमन सिंह गार्जन