बाहों में तेरी आने के सपने सब चकनाचूर हुए

फिर से न मिले कभी वैसे जब से हम दोनों दूर हुए

बाहों में तेरी आने के सपने सब चकनाचूर हुए।

 

जब पहली दफा तुझे देखा उस अल्हड़ मस्त जवानी में

तन की सब बाछें डूब गई तेरे नैनों के पानी में

रसमधुर लचकती काया ने मन विचलित पहली बार किया

तू बनी स्वप्न की शहजादी जब से तेरा दीदार किया

तेरा बस हल्का मुस्काना दिलकश था सभी तरानों में

वो मनमोहिनी जीवन्त मिली जो अंकित थी दास्तानों में

कुछ पता नहीं कब आंख लड़ी कुछ पता नहीं कब प्यार हुआ

खुद की न खबर रही मुझको मैं जब से तुझपर हकदार हुआ।

इश्क की पगडंडी पर चलकर हम कितना मशहूर हुए

पर बाहों में तेरी आने के सपने सब चकनाचूर हुए।

 

कुछ हसरत छुपी रही दिल में किसी रोज मैं तुझको बतलाता

तू काली साड़ी में मिलने आती और तुझको मैं चूड़ी पहनाता

कभी शहर के होटल में जाकर मैं तेरी पसन्द आर्डर करता

कभी बस में बैठ तुम्हारे संग दुनिया से दूर सफर करता

कभी चलते-चलते थक जाता तो तेरी जुल्फों की छांव तले सोता

मकबूल हो जाती तुम मुझको कभी तो कुछ ऐसा होता

हर ख्वाहिश बह गई मेरी ऐसी बेगानी बरसात हुई

हम मिलने को कितना तरसे तुम से जब भी मुलाकात हुई

वक्त की रंजिश के आगे हम आखिर मजबूर हुए

बाहों में तेरी आने के सपने सब चकनाचूर हुए।

 

✍️….. अमन सिंह गार्जन