तुम जहाँ भी रहना खुश रहना
कर याद पुरानी बातों को तुम यूं न आंखों को नम करना
मैं जैसे-तैसे रह लूंगा तुम जहां भी रहना खुश रहना।
तुम दिन भर की सारी बातें हर शाम जो मुझे बताती थी
कोई दर्द तुम्हें जब होता था तो मुझको तुरन्त दिखाती थी
इश्क की दीवार-ओ-दर पे कभी हिज्र का साया पड़ता गर
सहमा-सहमा सा दिल लेकर तुम मुझसे लिपट सी जाती थी
पर रफ्ता-रफ्ता बिछड़ गया हम दोनों का अनमोल सफर
अब शायद तुम मुझे पुकारो भी पर मुझको न मिले कोई खबर
अब जो भी हो रहबर तुम्हारा सब हाल-ए-दिल उससे कहना
मैं जैसे-तैसे रह लूंगा तुम जहां भी रहना खुश रहना।
हर रोज तुम मुझे जगाती थीं गुड मार्निंग के मैसेज देकर
खुद से पहले खुद से ज्यादा तुम करती थी मेरी फिकर
मेरी खुशियों के सहफों पर कभी खरोंच कोई लग जाती तो
तुम दौड़ के मिलने आती थी मेरे जख्मों का मरहम बनकर
पर अब ये सिलसिला बन्द हुआ हमारे रिश्ते की परिपाटी से
वो खुशबू भी अब जुदा हुई दिल के फूलों की घाटी से
अब नये बागबां की खातिर तुम एक बार से फिर महकना
मैं जैसे-तैसे रह लूंगा तुम जहां भी रहना खुश रहना।
अब यादों की नैय्या लेकर सागर के पार उतरना है
जहां मुकम्मल नहीं मिला फिर भी हर हाल में चलना है
इश्क-ए-रूहानी रस्ते पर दो जिस्मों का अब काम ही क्या
तुम मेरे दिल में धड़कोगी मुझे तुम्हारे दिल में धड़कना है
मिलना और बिछड़ना तो इस जीवन की दस्तूरी है
प्यार से ज्यादा इस जीवन में और भी काम जरूरी हैं
अब जज्बातों के दरिया में तुम व्यर्थ कभी भी न बहना
मैं जैसे-तैसे रह लूंगा तुम जहां भी रहना खुश रहना।
✍️….. अमन सिंह गार्जन