तुम्हारे किए का असर

तुम्हारे किए का असर कुछ इस तरह से है

मेरे गांव का मौसम जवां होता है मगर उसमें अल्हड़पन नहीं आता

सारे मौसम आते हैं मगर सावन नहीं आता।

छत पर रखे गमले के फूल अधखिले रह जाते हैं

न उन पर तितलियां बैठती हैं न ही भौंरे मंडराते हैं।

नीम के पेड़ में निमकौरियां नहीं रूकतीं

आम के पेड़ में अमियां नहीं रूकतीं

सरसों के फूल पीले नहीं पड़ते

बाजरे की फसल में बालियां नहीं रूकतीं।

ये झील ये झरने ये नदी ये सागर

ये कुएं ये पोखर ये नहरें ये गागर

ये सूखे हैं सारे ये प्यासे हैं सारे

तुम्हारे किए का असर कुछ इस तरह से है।

 

तुम्हारे किए का असर कुछ इस तरह से है

मेरे घर में किवाड़ की सांकलें अब ढीली हो गई हैं

फर्श की टायलें अब नुकीली हो गई हैं।

दीवारों का पेंट छूट गया है

जिसमें हम मिलते थे वो कमरा अब टूट गया है।

एक मुद्दत से खाली है कपड़ों की अलमारी

धूल की गिरफ्त में हैं किताबें सारी।

दीवारों पर छिपकलियां नजर नहीं आतीं

जाले नजर नहीं आते मकड़ियां नजर नहीं आतीं।

रसोई के बर्तन अब खनकते नहीं हैं

ये कैसा दुःख है जो मसाले महकते नहीं हैं।

तुम्हारे किए का असर कुछ इस तरह से है।

 

तुम्हारे किए का असर कुछ इस तरह से है

तुमसे वापस लौटने में पैर थक गये हैं

उम्र से पहले ही बाल पक गये हैं।

मेरी नसों में खून की जगह एक दर्द बहता है

मन के ऊपर एक भारी भरकम बोझ रहता है।

मेरे चेहरे से उड़ चुकी हैं मस्तियां सारी

जैसे नक्सलवादी उजाड़ देते हैं बस्तियां सारी।

मेरे जिस्म की खेती पर ओले बरसते हैं

सीने पर बालों की जगह खंजर निकलते हैं।

सोने से पहले अब जमुहाई नहीं आती

नींद से जागकर अंगड़ाई नहीं आती।

जिंदगी में है इतना खालीपन जैसे

बिन आभूषणों के सजी हो कोई दुल्हन जैसे।

तुम्हारे किए का असर कुछ इस तरह से है।

 

तुम्हारे किए का असर कुछ इस तरह से है

मेरे सर के नीचे अब तकिया चुभता है

चादर ओढ़ता हॅूं तो दम घुटता है।

धूप में पड़े कपड़े सुलगने लगते हैं

जूतों के अन्दर पैर जलने लगते हैं।

चांद की चांदनी धरती तक आते-आते कांपने लगती है

दिये की बाती जलते-जलते हांफने लगती है।

ये रास्ते ये गलियाँ ये चौराहे सब सुनसान लगते हैं

हम अपने घर में भी अब अनजान लगते हैं।

सीढ़ियों पर चढ़ते-चढ़ते चक्कर आ जाते हैं

हम मंजिल से वापस थककर आ जाते हैं।

तुम्हारे किए का असर कुछ इस तरह से है।

 

तुम्हारे किए का असर कुछ इस तरह से है

उम्र के किसी मरहले पर अब मैं छूट चुका हूँ

मैं अब कई टुकड़ों में टूट चुका हूँ।

मेरे भूखा रहने पर अब खाना खिलाता नहीं कोई

मुझे रोता देख अब सीने से लगाता नहीं कोई।

मैं अब आईने से कभी बात नहीं करता

दोस्त फोन पर फोन करते हैं पर मुलाकात नहीं करता।

छोटी-छोटी बातों पर अक्सर लड़ के बैठ जाता हूँ

बेकार के ख्यालों को पकड़ के बैठ जाता हूँ।

फलक को छूने वालों की नाकामियां देखता हूँ

मैं अब भले शख्स में भी खामियां देखता हूँ।

तुम्हारे किए का असर कुछ इस तरह से है।

 

तुम्हारे किए का असर कुछ इस तरह से है

दिल नाम-ए-मोहब्बत से नफरत करने लगा है

किसी भी शख्स पर यकीं करने से डरने लगा है।

हुस्न-ए-मल्लिकाओं के चेहरों पर छलावे नजर आते हैं

झूठ से लिपटे हुए इनके हर दावे नजर आते हैं।

शक की नजर से भर चुका है मन सारा

जैसे धुन्ध से धूमिल हुआ हो गुलशन सारा।

अब किसी माशुका पर मेरा दिल नहीं आता

कभी आता है थोड़ा सा मगर कामिल नहीं आता।

बड़ा मुश्किल है कि अब मैं किसी का हो पाऊँ

किसी की बाँहों में फिर से दोबारा सो पाऊँ।

तुम्हारे किए का असर कुछ इस तरह से है।

तुम्हारे किए का असर, अब रहेगा हमेशा उम्र भर।

 

✍️….. अमन सिंह गार्जन