मैं अब रह लूँगा तुम्हारे बिना

मैं अब रह लूंगा तुम्हारे बिना…..

एक गुमनाम पुल पर जिस जगह बेरहमी से छोड़ गई थी तुम,

मुझसे जो सारे नाते तोड़ गई थी तुम ।

वो गुलबदन जिस पर गुमान था तुम्हें

मैं जो चाहता तो मुझे और भी मिल सकते थे,

वो फूल जो कभी तुम्हारे लिए खिला था

तुम्हारी बाजुओं से कहीं दूर भी खिल सकते थे।

जिन लबों ने तुम्हारा नाम गुनगुनाया

उन लबों पे तरन्नुम बदल भी सकते थे।

हाँ माना कि अब दर्द के दहकते सफर पे चल पड़ा हूँ

स्याह रातों की हांफती हुई फसीलों पे खड़ा हूँ

हाँ माना कि तुम्हारी यादों के पंजे मेरी रूह को खुरचते हैं,

आंसुओं के बादल हर रोज बरसते हैं।

पर अब मैं ये सब सह लूंगा तुम्हारे बिना,

मैं अब रह लूंगा तुम्हारे बिना ।

 

✍️….. अमन सिंह गार्जन