मेरे भावों से ना खेलो
साध लो मुझको या मुझसे तुम विदा ले लो
मगर ऐ हमसफर तुम यूं मेरे भावों से न खेलो।
मुसव्विर बनके तुमने रंग भरा था मेरे जीवन में
तुम्हीं ने बीज रोपे थे प्रणय के दिल के आंगन में
अब कि जब हम भी सर-ए-राह-ए-वफा में कुर्बा हैं जाना
तब तुम्हारी दिलचस्पियां कुछ मुख्तसर होने लगी हममें
अगर उकता गई हो तुम मेरी चाहत के गुलशन से
तो जाओ शौक से तुम फिर कोई भंवरा नया चुन लो
मगर ऐ हमसफर तुम यूं मेरे भावों से न खेलो।
आगाज-ए-इश्क में थी तुम मुझमें इस कदर खोई
जैसे कोई कवि फिरे गाता अपनी ही धुन में पुरगोई
कभी तुम मेरे आगे खोलती थी दिल का हर पल्ला
पर अब लगता है दिल में तुम्हारे चोर दरवाजा है कोई
इससे पहले तुम्हारे अनकहे से भेद खुल जाएं मेरे आगे
मेरी बांहों में आकर तुम प्यार के हक अदा कर लो
मगर ऐ हमसफर तुम यूं मेरे भावों से न खेलो।
✍️….. अमन सिंह गार्जन