एक रोज

एक रोज ये गुलिस्तां जो गुलजार नजर आता है वीरान हो जाएगा,

जीसत का रास्ता श्मशान हो जाएगा ।

ये बयारें जो जिस्म को सहलाती हैं रुक जाएंगी,

बिफरते समंदर की आवारा लहरें थक जाएंगी।

एक रोज इन मौसम की चहलकदमियां नेस्तनाबूद हो जाएंगी,

ये चाँद सूरज डूब जाएंगे तारीकियों की कन्दराओं में ।

थम जाएगी ये धरती अपनी धुरी पर घूमते-घूमते ।

मिट जाएगी संसार की हर एक शै ।

बस अगर कुछ बाकी रह जाएगा तो रह जाएंगी आकाश के किसी छोर में तुम्हारा इन्तजार करती हुई मेरी दो आँखें ।

 

✍️….. अमन सिंह गार्जन