आखिरी फोन
कई महीनों के बाद आज उसका फोन आया था,
हां कई महीनों के बाद ।
वो एक फोन जिसने फिर से खोल दी यादों की बन्द अलमारियां
सीने में उलझनों का दसना करवटें लेने लगा
आंखों में तैरने लगीं झिलमिली सी तस्वीरें,
सांसों ने उतार फेंकी सुकून की चादरें ।
वो एक फोन जिसने फिर से याद दिला दिए बाहों में जीने के दिन, आंखों से पीने के दिन
घड़ियां वो मसर्रत वाली, प्यार और मोहब्बत वाली ।
और साथ ही साथ याद दिला दिया वो दिन जिस रोज उसने बेवफाई के खन्जर से मेरे दिल पे वार किया और एक ही झटके में कत्ल कर दिया मेरे बरसों के प्रेम का। एक पराये शख्स ने उसकी जिन्दगी में रोशनी की कुछ अफसां छिड़की और वो जगमगाने लगी उस पराये शख्स की परस्तिश में।
मैंने उसे रोकने की कई सारी नाकाम कोशिशें की। जिन्दगी में पहली मर्तबा मैंने मोहब्बत की भीख मांगी, हालातों के पैर पकड़े। उसे रोकने की खातिर मैं उसकी
शर्तों पर चलने को राजी था, उसके सजदे करने को राजी था ।
पर जाने वाले कब रूकते हैं, वो छोड़ जाते हैं सब जज्बातों से खेलकर ।
मुझे आज भी याद है उस दिन के बाद,
निवालों को गले से उतारने के लिए मुझे रोना पड़ता था नींद की गोलियां खाकर सोना पड़ता था
न दाढ़ी न बाल कटवाने का कोई होश रहता था
न ही किसी काम में मन लगता, न ही कोई जोश रहता था
यादें जब हद से ज्यादा आतीं तब सीने में धड़कन रुक जाती थी
पीड़ा जब हद से ज्यादा बढ़ती तब नाक से खून बहता था
कभी-कभी एकाकी मन बस मर जाने को कहता था ।
इस सबके बावजूद मैं उम्मीदों की चौखट पर बैठकर उसका इन्तजार किया करता कि काश उसे मेरा प्यार समझ आये और वो लौट आये दोबारा मेरे पास।
अब…
अब जब सब उम्मीदों के रोशनदान चुनवा चुका हूँ जवानी को आरियों से गटों में काटकर गिरा चुका हूँ
खुशियों के कमल कुम्हला चुके हैं
आँख के आँसू बिलखकर सो चुके हैं
अब जब हम बर्बाद हो चुके हैं
तब उसने फोन करके मेरा हालचाल पूछा है
और मुझसे माफी मांगी है उन तमाम गुनाहों की जिनसे उबरना मेरे लिए नामुमकिन सा है।
आज उसने बात की उन दिनों की जब वो मेरे साथ बहुत खुश रहा करती थी
मुझसे बिछड़ न जाए इस बात से वो भी डरती थी
कभी उसे भी अच्छा लगता था मेरे हांथ में हांथ डालकर टहलना
कभी उसे भी अच्छा लगता था मेरी पसन्द के झुमके पहनना
कभी उसे भी अच्छा लगता था मेरा जूठा पानी पीना कभी उसे भी अच्छा लगता था मेरे पहलू में जीना
वो एक लड़का जो उसकी जिन्दगी में आ गया
न जाने किस बात का जादू करके उसपे छा गया
वो एक लड़का जिसकी खातिर उसने मुझे छोड़ा था
मेरी जिन्दगी मेरे जज्बातों को बुरी तरह से निचोड़ा था आज वो उस लड़के को भी छोड़ चुकी है
उससे भी सारे नाते तोड़ चुकी है
इतना कहते-कहते वो रोने लगी और सिसकियां लेते हुए रुंधे गले से बोली कि वो लड़का मुझे रखता था अवैध धमकियों के कटघरे में
उसने छीन ली थी मेरी सारी आजादी
और मैं थक चुकी थी उसकी नाजायज मांगों को पूरा करते-करते
वो ये सब कहती जा रही थी और ये सुन-सुनकर मेरी आँखें बहती जा रही थीं ।
कुछ देर की खामोशी के बाद उसने मुझसे बोला कि अब मैं लौट आना चाहती हूँ तुम्हारे पास ।
ये सुनकर मैं सहम गया
मेरे होंठो पर चुप्पियों के ताले पड़ गये ।
मैं उससे बहुत कुछ कहना चाहता था।
मैं उसे दिखाना चाहता था अपने दिल का वो पतझड़
जिसकी हरी-भरी डालियों को किसी रोज उसने झकझोर कर तोड़ा था।
पर उस दिन मैं उससे कुछ कह नहीं पाया
और कंपकपाती उंगलियों से मैंने फोन काट दिया
उसके बाद वो फोन करती रही और मैं फोन काटता रहा ।
✍️….. अमन सिंह गार्जन